छोरा ने मोबाइल खाग्यो,
किश्तां खागी तिनखा न।
लुगायां ने फैसन खागी,
चिंता खागी मिनखां न।
मकाना ने फ्लेट खायग्या,
शहर खायग्या गाँवा न।
परिवारा ने राड़ खायगी,
फूट खायगी भायां न।।
शॉपिंगमाल दुकाना खाग्या,
डेयरी खागी धीणे न।
कोल्डड्रिंक के लारे भूल्या,
छाछ शिकंजी पीणे न।।
पिज्जा तो रोट्यां न खागी,
गैस खायगी चूल्हा न।
बाजारू मिठायाँ खागी,
गुड़ और गुलगुला न।।
पैसा रो दिखावो खाग्यो,
आदर और सत्कार न।
बुफे रो खाणो तो खाग्यो,
जीमण में मनुहार न।।
हिंदी ने अंग्रेजी खागी,
इंजेक्शन खाग्या घासा न।
आपां तो खुद ही खाग्या,
आपाणी मायड़ भाषा न।।
कुरीत्या रीत्यां ने खागी,
नफरत खागी प्यार न।
विदेशी कल्चर ले डूब्यो
आपाणे संस्कार न।।
आँख्या वाळा ही अन्धा तो,
दोष नही है अन्धे न।
'गिरवर दास' समझ नही पायो,
दुनिया रे गोरखधंधे न।।
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